
वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसानों में चेहरों का गुणात्मक अध्ययन करने की नैसर्गिक क्षमता होती है. हम आँख, नाक, होठ तथा बाकी के चेहरे का तुलनात्मक अध्ययन कर एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अलग समझ पाते हैं. यही तकनीक बंदर भी अपनाते हैं.
इमोरी विश्वविद्यालय के रोबर्ट हैम्पटन ने एक प्रयोग द्वारा यह साबित किया. उनकी टीम ने एक चार साल के हैसस बंदर को चुना और उसे 6 अलग अलग बंदरों की तस्वीरें दिखाई. सबसे पहले उस बंदर को अन्य बंदरों की सामान्य तस्वीरें दिखाई गई और बाद में ऊल्टी तस्वीरें दिखाई गई. उस बंदर ने थोडी देर तक तो तस्वीरों को देखा फिर अपना ध्यान कहीं ओर लगा लिया और तस्वीरों की तरफ ध्यान देना छोड दिया.
इसके बाद वैज्ञानिकों ने उस बंदर को कुछ अजीब तस्वीरें दिखाई. इन तस्वीरों में बंदरों के चेहरों को तो सीधा ही रखा गया था परंतु आँखों और होठ को अलग से काटकर ऊल्टा कर दिया गया था. इस बार वह बंदर चौंक गया और उन तस्वीरों को ध्यान से देखने लगा.
उस बंदर ने ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा कोई इंसान ऐसी तस्वीर देखकर करता. इससे साबित हुआ कि बंदर चेहरा पहचानने के लिए इंसानों की तरह ही दक्ष होते हैं.
रोबर्ट हैम्पटन के अनुसार यह कला हम इंसानों में पिछले 30 लाख सालों से मौजूद है.
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