Tuesday, May 26, 2009

गर लेना हो होम लोन

जमीन की कीमतों में आए ठहराव और तमाम बैंकों द्वारा होम लोन की ब्याज दरों में की जा रही कटौती के चलते यह सही वक्त है, जब आप होम लोन लेकर

अपने घर का सपना साकार कर सकते हैं। क्या तरीका है होम लोन लेने का? कितनी अमाउंट का लोन आपको मिल सकता है? लोन लेने के लिए किन-किन कागजात की जरूरत होगी? एक्सर्पट्स से बात करके होम लोन से जुड़े ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशे हैं प्रभात गौड़ ने-

कितनी तरह के होम लोन

घर खरीदने के लिए लोन : घर खरीदने के लिए लिया जाने वाला लोन। होम लोन का मतलब आमतौर पर इसी लोन से लगाया जाता है।

घर में इंप्रूवमंट के लिए लोन : अगर आप घर को रेनोवेट कराना चाहते हैं या कुछ मरम्मत आदि करानी है, तो यह लोन लिया जा सकता है।

कंस्ट्रक्शन लोन : आपके पास प्लॉट (जमीन) पहले से हो तो उस पर मकान बनाने के लिए लिया जाने वाला लोन।

कन्वर्जन लोन : मान लीजिए आप जिस मकान में रह रहे हैं, उसके लिए आपने होम लोन लिया है। अब आप दूसरा घर खरीदना चाहते हैं, जिसके लिए आपको और पैसे की जरूरत है। कन्वर्जन लोन के माध्यम से पुराना लोन नए घर के लोन पर ट्रांसफर हो जाता है। इसमें जो एक्स्ट्रा पैसे की जरूरत होती है, वह भी शामिल होता है। ऐसा करने से कस्टमर पुराने लोन को चुकाने में दिए जाने वाले प्रीपेमंट चार्ज से बच जाता है।

लैंड परचेज लोन : मकान बनाने या सिर्फ इनवेस्टमंट की नजर से अगर आप जमीन खरीद रहे हैं तो लैंड परचेज लोन ले सकते हैं।

किसे मिल सकता है लोन

लोन की शुरुआत होते वक्त लोन लेने वाले की उम्र कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए।

लोन मचुअर होते वक्त उम्र 65 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

लोन लेने वाला या तो सैलरीड हो या सेल्फ एंम्प्लॉयड (अपना कारोबार आदि) हो। अगर कोई प्रॉबेशन पर है तो वह होम लोन का हकदार नहीं है।

कितना मिल सकता है लोन

बैंक आमतौर पर कुल मासिक बचत का करीब 40 गुना लोन देते हैं। सैलरी के रूप में आप महीने में जितनी रकम घर ले जाते हैं, उसमें से घरेलू खर्च में काम आने वाली रकम और किसी दूसरे लोन के लिए चुकाई जा रही ईएमआई की रकम को भी घटा दिया जाता है। इस तरह जो रकम मिलती है, उसका 40 गुना लोन मिलता है। अगर आप बिजनेस में हैं तो आपकी आमदनी नेट प्रॉफिट से मानी जाएगी, न कि कुल टर्नओवर से। वैसे, अलग-अलग बैंकों का अलग-अलग फॉर्म्युला होता है और लोन की रकम प्रॉपर्टी की कीमत पर भी निर्भर करती है। ज्यादातर बैंक प्रॉपर्टी की कीमत का 80 से 85 फीसदी तक लोन दे देते हैं, लेकिन यह सब बैंक पर निर्भर करता है। प्रॉपर्टी की कीमत प्रॉपर्टी की असली कीमत और रजिस्ट्री पर आने वाला खर्च भी शामिल होता है।

लोन लेने का प्रोसेस

1. एप्लिकेशन भरना

जरूरी डॉक्यूमंट्स के साथ ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा किया जाता है। जरूरी कागजात ये हैं :

आइडेंटिटी प्रूफ : वोटर आईडी, पैन कार्ड, पासपोर्ट, फोटो क्रेडिट कार्ड आदि में से कोई एक।

रेजिडेंस प्रूफ : राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, रेंट अग्रीमंट।

इनकम प्रूफ : अगर अपना काम है तो इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, अगर नौकरी करते हैं तो फॉर्म 16 और पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप, पिछले छह महीने की बैंक स्टेटमंट।

एम्प्लॉयमंट डीटेल : अगर नौकरी करते हैं और आपकी कंपनी जानी-मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।

प्रोसेसिंग फीस : ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रोसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यह अमूमन लोन की कुल रकम का आधे से 1 फीसदी होता है। कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस नहीं भी लेते हैं।

बात पते की : कुछ बैंक प्रोसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं, इसलिए इस पर मोलभाव करके फीस को कम कराया जा सकता है। लोन अप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होता है।

2. पर्सनल वेरिफिकेशन

ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाइ करता है। कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।

बात पते की : इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रोसेस को पूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार-बार कॉल आने पर चिढ़ें नहीं।

3. हरी झंडी

आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडी दिखा देगा, नहीं तो उसे रिजेक्ट कर देगा। वैसे अगर ऐप्लिकेशन रिजेक्ट की जा रही है तो बैंक आमतौर पर बैंक इसकी कोई वजह नहीं बताते। कस्टमर की रीपेमंट कपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लिया जाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।

4. ऑफर लेटर

इसके बाद बैंक तमाम सूचनाओं के साथ कस्टमर को ऑफर लेटर देता है, जिसकी एक कॉपी को साइन करके कस्टमर बैंक को लौटाता है।

बात पते की : ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जो आपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।

5. प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन

इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमंट की मदद से बैंक प्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्यूमंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनी है। इसके बाद बैंक अपने एक्सपर्ट्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का वेरिफिकेशन कराता है और उसके बाद वैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।

बात पते की : यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफिकेशन के लिए कस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन ओके कर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए, क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टी कानूनी रूप से पूरी तरह सेफ है। उसमें कोई धोखा नहीं है।

6. अग्रीमंट साइन

इसके बाद लोन अग्रीमंट साइन हो जाता है और कस्टमर के नाम पर प्रॉपर्टी के ट्रांसफर होने के ओरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के सबूत मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन के अलावा जो रकम आपको देनी है, वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट-डेटेड चेक भी जमा कराता है जिनसे रीपेमंट होता रहे।

बात पते की : ध्यान रखें कि लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इश्यू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा, कस्टमर के नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं, जिस दिन चेक इश्यू होता है। आपको चेक कब सौंपा गया, इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इश्यू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी उसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं, इसलिए इन कागजात की फोटोस्टेट कॉपी अपने पास जरूर रख लें। कई बार बैंक प्रॉपर्टी के कागजात खो देते हैं। ऐसे में बैंक यह कह सकता है कि उसके पास कागज जमा ही नहीं कराए गए। इसलिए जिस वक्त आप प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात जमा कराएं तो बैंक से उसका सटिर्फिकेट भी ले लें।

7. बैंक से चेक आना

अगर प्रॉपर्टी रहने के लिए तैयार है तो लोन का भुगतान एक बार में ही हो जाता है। लेकिन अगर मकान बन रहा हो तो लोन अमाउंट का भुगतान कई हिस्सों में होता है। अगर भुगतान कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्से के भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान हो जाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम का डिस्बर्समंट नहीं हो जाता। इसे प्री-ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेते हैं।

बात पते की : प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है। किस्त की अदायगी बिल्डर को करने के फौरन बाद उससे ली गई रसीद को बैंक में जमा कराएं।

फिक्स्ड रेट या फ्लोटिंग?

फिक्सड रेट: फिक्स्ड रेट पर लोन लेने से कस्टमर को पूरी अवधि के दौरान बराबर ईएमआई देनी होती है। अगर एक्सपर्ट्स आने वाले समय में ब्याज में बढ़ोतरी की संभावना जाहिर कर रहे हैं तो फिक्स्ड रेट पर लोन लेना ठीक है।

फायदे : इस पर बाजार में हो रहे उतार-चढ़ाव और घटती-बढ़ती ब्याज दरों का कोई असर नहीं होता। हमेशा के लिए एक-सी ईएमआई फिक्स हो जाती है। सुरक्षा का भाव रहता है।

नुकसान : यह फ्लोटिंग रेट के मुकाबले 1 से 2.5 फीसदी ज्यादा होती है। अगर कभी ब्याज दरों में गिरावट आ जाए तो भी कस्टमर की ईएमआई में कमी नहीं होती। कई बार फिक्स्ड रेट पूरी अवधि के लिए न होकर सिर्फ कुछ सालों के लिए होता है। कुछ साल बाद इसमें बढ़ोतरी कर दी जाती है। इस पॉइंट को बैंक से साफ कर लें।

फ्लोटिंग रेट: फ्लोटिंग रेट होम लोन एक बेस रेट और फ्लोटिंग एलिमंट का मिक्सचर होते हैं। अगर बेस रेट में अंतर आएगा तो फ्लोटिंग रेट में भी अंतर आ जाएगा। लोन की अवधि के दौरान यह घटता-बढ़ता रहता है।

फायदे : फिक्स्ड रेट के मुकाबले अमूमन 1 से ढाई फीसदी कम होता है यानी पैसे की सेविंग होती है। बढ़ते-बढ़ते कभी-कभी यह फिक्स्ड रेट से ऊपर भी निकल सकता है, लेकिन ऐसा कुछ समय के लिए ही होता है। कुछ समय बाद यह रेट फिर से फिक्स्ड रेट से नीचे आ जाता है।

नुकसान : ईएमआई में बदलाव होता रहता है, जिसके चलते बजटिंग में दिक्कत होती है।

बात पते की : होम लोन लेने वाले तकरीबन 90 फीसदी लोग फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लेते हैं, फिर भी बजटिंग सुरक्षा और सरटेनिटी अगर आपकी प्रायॉरिटी हैं तो फिक्स्ड रेट चुन सकते हैं।

कैसे चुनें बैंक
लोन किस बैंक से लेना है, इसका फैसला करते वक्त इन पॉइंट्स को ध्यान में रखें

1. ब्याज की दर कम-से-कम हो।

2. बैंक द्वारा लिया जाने वाला प्रॉसेसिंग चार्ज कम-से-कम हो।

3. अगर समय से पहले लोन की रकम का पूरा भुगतान कर रहे हैं तो बैंक कोई पेनल्टी न वसूलता हो।

4. कोई और छिपे हुए चार्ज न हों।

लोन का रीपेमंट
1. पोस्ट डेटेड चेक : बैंक में 36 पोस्ट-डेटेड चेक जमा करा दिए जाते हैं, जिनसे खुद-ब-खुद ईएमआई की रकम बैंक को मिल जाती है।

2. सीधे एंप्लॉयर से : कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को यह सुविधा देते हैं। इस व्यवस्था में कंपनी कर्मचारी की सैलरी से ईएमआई की रकम काटकर बैंक को दे देती है और बाकी सैलरी कर्मचारी के अकाउंट में आ जाती है।

3. कैश पेमंट : ईएमआई आप ड्राफ्ट या कैश की मदद से हर महीने भी बैंक में जमा करा सकते हैं। हालांकि, कुछ बैंक ऐसी सुविधा नहीं देते।

4. ईसीएस : ईएमआई अदा करने का कारगर तरीका है। इस व्यवस्था में ईएमआई की रकम हर महीने आपके बैंक अकाउंट से अदा की जाती रहती है।

प्रीपेमंट/प्रीक्लोजर
लोन ली गई रकम का प्रीपेमंट जब चाहे तब किया जा सकता है। आप चाहें तो कुछ रकम वक्त से पहले अदा कर दें और चाहें तो पूरी रकम। कुछ बैंक कहते हैं कि कुछ निश्चित बार ही आप प्रीपेमंट कर सकते हैं। कुछ समय पहले तक प्रीपेमंट करने पर बैंक कुछ फीस चार्ज करते थे, लेकिन अब बढ़ते कॉम्पिटीशन के चलते कुछ बैंकों ने यह फीस चार्ज करना बंद कर दिया है। आमतौर पर यह फीस आउटस्टैंडिंग रकम का 2 फीसदी होती है।

जब लोन का पूरा पेमंट हो जाए (चाहे प्रीपेमंट के जरिये या फिर वक्त पर) तो बैंक से अपनी प्रॉपर्टी के ऑरिजनल पेपर्स ले लें। साथ ही बैंक से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी लें। कई बार बैंक एक सर्टिफिकेट भी जारी कर देते हैं कि प्रॉपर्टी अब मॉर्गिज में नहीं है। अगर आपका लोन सैंक्शन होते वक्त गारंटर्स भी थे तो बैंक उनके लिए अलग से सर्टिफिकेट इश्यू करेगा कि अब उनकी जिम्मेदारी खत्म हुई।

होम लोन का टैक्स बेनिफिट
होम लोन को लौटाने में जो ईएमआई दी जाती है, उसका कुछ हिस्सा प्रिंसिपल अमाउंट होता है और कुछ हिस्सा ब्याज। जो रकम ब्याज के रूप में अदा की जाती है उस पर इनकम टैक्स के सेक्शन 24 बी के तहत टैक्स में राहत मिलती है। इसकी सीमा डेढ़ लाख रुपये है। जो रकम प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर अदा की जाती है, उस पर 80सी के तहत छूट मिलती है। इसे एक लाख रुपये की सीमा के अंदर काउंट किया जाता है। इसके लिए बैंक द्वारा जारी किया गया सर्टिफिकेट पेश करना होता है, जिसमें बताया जाता है कि आपने पूरे साल के दौरान कितनी रकम प्रिंसिपल के तौर पर अदा की और कितनी ब्याज के तौर पर।

होम लोन का इंश्योरंस
अक्सर लोग इस डर के चलते होम लोन नहीं लेते कि अगर कोई अनहोनी हो गई तो लोन की रकम कौन चुकाएगा। इसके लिए इंश्योरंस कंपनियां कस्टमर द्वारा लिए गए होम लोन का इंश्योरंस ऑफर करती हैं। होम लोन का इंश्योरंस कराने के बाद अगर कस्टमर की असमय मौत हो जाती है तो बची हुई रकम का भुगतान इंश्योरंस कंपनी करती है। इंश्योरंस के प्रीमियम के तौर पर दी जा रही रकम पर इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है। कंपनियां कई तरह के ऑप्शंस देती हैं, फिर भी आमतौर पर दो तरह के प्लान हैं।

सिर्फ इंश्योरेंस प्लान : इसमें लोन रीपेमंट की अवधि के दौरान मौत हो जाने पर रीपेमंट की जिम्मेदारी कंपनी की होगी। लेकिन, अगर एक बार आपका रीपेमंट पूरा हो गया तो इंश्योरंस खत्म हो जाता है और कस्टमर को कंपनी की तरफ से सिर्फ सम अश्योर्ड ही मिलता है। बोनस आदि कुछ नहीं मिलता। इस तरह की स्कीमों में प्रीमियम की रकम कम होती है।

इंश्योरंस के साथ इनवेस्टमंट प्लान : इसमें होम लोन के रिस्क कवर के साथ इनवेस्टमंट संबंधी फायदे भी मिलते हैं। रीपेमंट पूरा हो जाने के बाद कस्टमर को सम अश्योर्ड के साथ उस वक्त तक बोनस भी मिलता है। इस तरह की पॉलिसीज में प्रीमियम की रकम थोड़ी ज्यादा होती है।

बात पते की : कई बैंक होम लोन देते वक्त होम लोन के इंश्योरंस की व्यवस्था भी साथ ही कर देते हैं यानी आपकी ईएमआई में होम लोन के इंश्योरंस के प्रीमियम की रकम भी जोड़ ली जाती है। कुछ बैंकों के इंश्योरंस कंपनियों से टाईअप होते हैं। ऐसे में बैंक से होम लोन लेते वक्त ही होम लोन के इंश्योरंस की बात भी कर लेनी चाहिए। अगर आपका लाइफ इंश्योरंस है, फिर भी लोन का इंश्योरंस कराना चाहिए।

5 कॉमन मिस्टेक्स
टॉप-अप लोन लेना: टॉप-अप लोन होम लोन के साथ दिया जाने वाला एडिशनल लोन होता है, जिसका मकसद मकान के इंटीरियर डेकोरेशन और इसी तरह के दूसरे खर्चों को पूरा करना होता है। कुछ बैंक होम लोन के साथ टॉप-अप लोन का भी ऑफर देते हैं। लोग आमतौर पर इन लोन को ले लेते हैं और बाद में उन्हें पता चलता है कि टॉप-अप लोन को पर्सनल लोन के तौर पर ट्रीट किया जाता है, जिसकी ब्याज की दर होम लोन की दर से कहीं ज्यादा होती है।

नेगेटिव अमॉर्टाइजेशन: नेगेटिव अमॉर्टाइजेशन की स्थिति तब आती है जब किसी खास अवधि में बैंक लोन की किस्त कम कर देते हैं। इस तरह की सुविधा वाला लोन यंग प्रफेशनल्स के लिए ऑफर किया जाता है। इसमें शुरुआती बरसों में सिर्फ ब्याज की रकम वसूलकर ईएमआई को कम दिखा दिया जाता है। दो साल बाद आपको पता चलता है कि प्रिंसिपल के रूप में आपने कुछ भी अदा नहीं किया है और इस तरह आपके द्वारा वापस की जाने वाली राशि लगभग ज्यों की त्यों बनी रहती है।

प्रॉपर्टी किसी के नाम, लोन किसी के नाम
अक्सर लोग किसी और के नाम पर मौजूद प्रॉपर्टी पर लोन लेने की गलती कर देते हैं। इसे इस उदाहरण से देखिए। मिस्टर शर्मा की मां के नाम कुछ जमीन थी। उन्होंने उस जमीन पर घर बनाने के लिए होम लोन अपने नाम पर ले लिया। ऐसी गलती न करें। अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आपको होम लोन पर कोई टैक्स बेनिफिट नहीं मिलेगा।

कल के बल पर लोन
कई बार यंग प्रफेशनल्स इस उम्मीद में कूवत से ज्यादा लोन ले लेते हैं कि आने वाले वक्त में उनकी आमदनी बढ़ जाएगी, लेकिन आजकल के माहौल में इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आने वाले साल में आपकी आमदनी बढ़ ही जाएगी। ऐसे में कल आमदनी बढ़ जाने के भरोसे लिए गए लोन की रीपेमंट करना मुश्किल काम हो सकता है।

बैंक चुनने में जल्दबाजी
कई बार प्रॉपर्टी का चुनाव करने से पहले ही लोग लोन लेने के लिए बैंक से बात करना शुरू कर देते हैं। पहले प्रॉपर्टी फाइनल करें, फिर बैंक से लोन की सैंक्शन लें। कई बैंक रहने के लिए तैयार मकान पर ही लोन देते हैं। इसके अलावा, याद रखें कि बैंकों की सभी टर्म नेगोशिएबल होती हैं। बैंक का फैसला कई बैंकों से जानकारी लेने के बाद ही करें, तो अच्छा है।

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