Tuesday, May 26, 2009

बड़ा धोखा है क्रेडिट कार्ड में...

आज के दौर में क्रेडिट कार्ड फैशन स्टेटमेंट की बजाए एक जरूरत बन गया है, लेकिन इसका इस्तेमाल करने

वाले लोग अक्सर तमाम शिकायतें करते नजर आते हैं। थोड़ी-सी लापरवाही और कुछ नासमझी के चलते लोग अक्सर धोखा उठा बैठते हैं। क्या हैं क्रेडिट कार्ड से जुड़े सामान्य घपले? कार्ड यूज करते वक्त एक आम कस्टमर को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? आमतौर पर लोग क्या गलतियां करते हैं? इसी के बारे में जानते हैं

क्रेडिट कार्ड से संबंधित शिकायतें करने के लिए लोगों को आमतौर पर लोगों के कस्टमर केयर का ही नंबर पता होता है, लेकिन अगर वहां सुनवाई न हो तो आगे भी शिकायत की जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने की पूरी प्रक्रिया पर आरबीआई, नई दिल्ली के रीजनल डायरेक्टर आर. गांधी से बातचीत की

क्रेडिट कार्ड से संबंधित शिकायतों की सुनवाई अगर संबंधित बैंक न करे तो क्या करें?

ऐसे में बैंकिंग ओम्बड्समन के ऑफिस में शिकायत की जा सकती है। हर राज्य की रिजर्व बैंक अव इंडिया (आरबीआई) की ब्रांच में यह कार्यालय होता है। कई छोटे राज्यों में दो राज्यों की मिलाकर एक ही ब्रांच होती है। जैसे दिल्ली में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की साझी ब्रांच आरबीआई में है। बैंकिंग ओम्बड्समन में शिकायत तभी दर्ज होगी, जब बैंक आपकी शिकायत पर एक महीने तक कोई कार्रवाई नहीं करता। बैंकिंग ओम्बड्मन में शिकायत या तो लिखित करें या फिर ई मेल करें। साथ ही अपने बैंक को की गई शिकायत की रिसीविंग भी जरूर लगाएं। बैंकिंग ओम्बड्समन की शिकायत ऑनलाइन भी की जा सकती है।

पता : बैंकिंग ओम्बड्समैन, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बिल्डिंग, दूसरी मंजिल, ६ संसद मार्ग, नई दिल्ली

फोन : 011-23725219

ईमेल: bonewdelhi@rbi.org.in

वेबसाइट: www.bankingombudsman.rbi.org.in

ओम्बड्समन के पास शिकायत करने के कितने दिन बाद कार्रवाई पूरी हो जाती है?

वैसे तो ओम्बड्समन के पास की गई शिकायत पर कार्रवाई की कोई टाइम लिमिट नहीं है। फिर भी आमतौर पर तीन महीने के अंदर मामलों का निपटारा हो जाता है।

बिल की ड्यू डेट से कितने दिन पहले कस्टमर को बिल मिल जाना चाहिए? क्या इस बारे में आरबीआई ने कोई नियम बनाए हैं?

आरबीआई ने ऐसे नियम तो नहीं बनाए हैं पर हर बैंक को अपने कस्टमर को इस बारे में पहले ही बता देना चाहिए। यह निर्देश आरबीआई ने सभी बैंकों को पहले से ही दे रखा है कि अपने कस्टमर्स को इस बारे में आगाह कर दे। जो बैंक ऐसा नहीं कर रहे, उनके बारे में आरबीआई के डिपार्टमंट ऑफ बैंकिंग सुपरविजन में शिकायत की जा सकती है।

लेट फीस और उस पर लगने वाले ब्याज के लिए क्या कोई सीलिंग है?

नहीं, सीलिंग का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इस बारे में अभी तक बैंकों पर ही छोड़ा गया है कि वे कितना सर्विस चार्ज या ब्याज लें। लेकिन उन्हें निर्देश दिए जा चुके हैं कि वे इस बारे में शुरू में ही कस्टमर को अपनी शर्ते बता दें और पूरी पारदर्शिता से काम करें। नैशनल कंज्यूमर फोरम ने भी इस बारे में कुछ निर्देश दिए है लेकिन उन पर बैंकों द्वारा केस लड़ा जा रहा है।


इन दिनों क्रेडिट कार्ड रखना लग्जरी या फैशन से कहीं ज्यादा जरूरत बन गया है। यह सुविधाजनक और फायदेमंद दोनों है। लेकिन अक्सर लोग क्रेडिट कार्ड को लेकर तमाम दिक्कतों का सामना भी कर रहे होते हैं।

क्रेडिट कार्ड कैसे-कैसे

कंपनियां आमतौर पर तीन तरह के कार्ड मुहैया कराती हैं - वीजा, मास्टर और एमैक्स। इन तीन कटिगरी में भी गोल्ड, सिल्वर और क्लासिक/इग्जेक्युटिव तीन सब-कटिगरी होती हैं। इन तीनों में मिलनेवाली सुविधाएं अलग-अलग होती हैं।

आमतौर पर गोल्ड कार्ड में सबसे ज्यादा इन्शुअरन्स कवर, बैगेज कवर, डिस्काउंट, रिवॉर्ड पॉइंट और दूसरी सुविधाएं दी जाती हैं। इस पर ब्याज भी सबसे कम वसूला जाता है, लेकिन इसकी फीस व सर्विस चार्ज सबसे ज्यादा होते हैं। कार्ड जारी करने के लिए यों तो कोई खास नियम नहीं हैं लेकिन साधारण कार्ड आमतौर पर उन लोगों के जारी किए जाते हैं, जिनकी सालाना कमाई कम-से-कम 70 हजार रुपये हो, जबकि गोल्ड कार्ड के लिए सालाना कमाई 1.80 लाख रुपये होनी चाहिए।

क्या हैं फायदे

हमेशा अपने साथ कैश लेकर चलना सुविधाजनक नहीं है। ऐसे में क्रेडिट कार्ड सहूलियत भरी शॉपिंग कराता है। क्रेडिट कार्ड कंपनियां अपने कस्टमर्स को एक निश्चित अवधि के लिए फ्री क्रेडिट पीरिअड की सुविधा देती हैं। यह अवधि स्टेटमंट डेट से लेकर पेमंट डेट तक की होती है। आमतौर पर यह 20 दिन का वक्त होता है। इस अवधि में कोई ब्याज नहीं लगता।

आप क्रेडिट लिमिट के अंदर चेक जारी कर सकते हैं और फोन पर ही ड्राफ्ट का ऑर्डर भी दे सकते हैं। ग्लोबल कार्ड के जरिए आप दूसरे देश में खरीदारी कर रुपये में भुगतान कर सकते हैं। क्रेडिट कार्ड कंपनियां दुकानों, होटेलों और एयर टिकिट आदि पर डिस्काउंट ऑफर करती हैं।

पर्सनल एक्सिडंट कवर और बैगेज कवर आदि की सुविधा भी दी जाती है। बैगेज कवर ज्यादातर गोल्ड व इंटरनैशनल क्रेडिट कार्ड पर ही दिया जाता है।कई कंपनियां परचेज प्रॉटेक्शन भी देती हैं। ऐसे में कार्ड से खरीदी गई चीजों के खोने, चोरी होने या आग आदि से नष्ट हो जाने पर आपको उसका बिल नहीं भरना पड़ेगा।

क्रेडिट शील्ड होना भी फायदेमंद है। अगर कार्ड होल्डर की मौत हो जाए और उसके कार्ड पर यह सुविधा है तो उत्तराधिकारी को बिल में कुछ छूट मिल जाती है। कार्ड कंपनियां शॉपिंग पर रिवॉर्ड पॉइंट्स भी देती हैं।

क्या हैं नुकसान

क्रेडिट कार्ड कई बार फिजूल की शॉपिंग की वजह बनता है। खासकर ऐसे लोग कार्ड की बदौलत ज्यादा शॉपिंग कर लेते हैं, जिन्हें शॉपिंग की लत होती है। फ्री क्रेडिट पीरिअड के बाद लगने वाला ब्याज काफी ज्यादा होता है। कार्ड इश्यू करने के लिए कंपनियां आमतौर पर फीस लेती हैं, जो सालाना 400 रुपए से लेकर दो हजार रुपए तक हो सकती है। कार्ड बनवाने के लिए भी कई मामलों में सौ से लेकर एक हजार रुपये तक फीस होती है।

कई बार क्रेडिट कार्ड चोरी हो जाता है या खो जाता है। ऐसे में उसके मिसयूज का डर होता है। इससे बचने के लिए सबसे पहले कस्टमर केयर को फोन करें और अपना कार्ड तुरंत बंद करा दें। इसके लिए एफआईआर या किसी और डॉक्युमंट की जरूरत नहीं होती। लेकिन अगर चोरी के बाद कार्ड से शॉपिंग की गई है या कोई और फ्रॉड किया गया है तो बैंक एफआईआर की कॉपी मांगता है। कार्ड खो जाने या चोरी हो जाने की सूचना देने के बाद लायबिलिटी फीस की एक अधिकतम सीमा निर्धारित है। ज्यादातर बैंकों के मामले में यह सीमा एक हजार रुपये है। लेकिन कार्ड खोने की रिपॉर्ट करने से पहले इसकी कोई सीमा नहीं है। यानी रिपॉर्ट किए जाने के वक्त तक चुराए गए या खोए हुए कार्ड से जो भी शॉपिंग की जाएगी, उसका भुगतान कार्ड होल्डर को करना होगा।

कार्ड कंपनियां आमतौर पर उस लायबिलिटी का जिक्र करती हैं, जो रिपॉर्ट करने के बाद होती है। रिपोर्ट करने से पहले की असीमित फीस को छिपा लिया जाता है।

आम समस्याएं और समाधान .
फॉर्म रिजेक्शन: कई बार कार्ड कंपनी कस्टमर के ऐप्लिकेशन फॉर्म को रिजेक्ट कर देती हैं। ऐसे में कंपनी कस्टमर को लेटर भेजकर सूचित करती है कि उसकी ऐप्लिकेशन कैंसल कर दी गई है। कई बार कंपनियां ये जानकारी नहीं देतीं। फिर कस्टमर द्वारा जमा कराए गए सेल्फ अटैस्टेड डॉक्युमेंट्स के मिसयूज का भी खतरा होता है। ऐप्लिकेशन रिजेक्ट होने पर कंपनी से अपने डॉक्यूमेंट वापस करने को कहें।

अनसॉलिसिटेड कार्ड: कई बार बिना अप्लाई किए ही क्रेडिट कार्ड बनकर आ जाता है। ऐसी हालत में कस्टमर को बैंक में शिकायत दर्ज करानी होगी कि उसकी सहमति बिना ही उसका क्रेडिट कार्ड बना दिया गया। अगर दो से तीन हफ्ते में बैंक का रिस्पॉन्स नहीं आता है तो बैंकिंग ओम्बड्समन को अप्रोच किया जा सकता है। बैंकिंग ओम्बड्समैन की साइट है www.bankingombudsman.rbi.org.in

बिल में देरी: कस्टमर्स को बिल अक्सर जमा होने की ड्यू डेट के बाद बिल मिलता है। ऐसे में कंपनियां लेट फीस चार्ज कर लेती हैं। नियमों के मुताबिक कार्ड यूजर को बिल जमा कराने की अंतिम तारीख से 15 दिन पहले मिल जाना चाहिए। अगर बिल में कुछ गड़बड़ है या बिल ज्यादा आया है तो कस्टमर बैंक से उस ज्यादा बिल का डॉक्युमेंटरी प्रूफ मांग सकता है।

कार्ड कैंसिलेशन: अगर कार्ड बंद कराना हो तो सबसे पहले कस्टमर को पूरा पेमंट करना चाहिए। उसके बाद कार्ड को चार हिस्सों में काटकर एक लिफाफे में बंद कर एटीएम में मौजूद बॉक्स में डाल दिया जाता है। लेकिन कई बार कार्ड कैंसल कराने की गुजारिश के बावजूद कार्ड के चालू रहने और फीस आने की शिकायतें आती रहती हैं। ऐसे में तुरंत बैंक से संपर्क करें और कार्ड बंद करवाएं।

लेट फीस: ड्रॉप बॉक्स में अंतिम तारीख को या उससे पहले चेक डाल देने पर भी कंपनियां लेट फीस लगा देती हैं, जबकि अगर कस्टमर ने ड्यू डेट से पहले चेक ड्रॉप बॉक्स में डाल दिया है तो उस पर लेट फीस नहीं लगाई जानी चाहिए। अगर ऐसा हो रहा है तो अपनी कंपनी से इस बारे में बात करें और लेट फीस को बिल में एडजस्ट कराएं।

ज्यादा बिल: कई बार कस्टमर्स के पास ज्यादा बिल भेज दिया जाता है। ज्यादा बिल आने पर कस्टमर केयर में कॉल करें और बिल के बारे में स्थिति साफ करें। इसके अलावा एक और बात ध्यान रखें। अगर आप अपना पेमंट कैश कर रहे हैं तो कई कार्ड कंपनियां फाइन लगा देती हैं, इसलिए इस बारे में पता कर लें और कोशिश करें कि पेमेंट चेक के माध्यम से ही किया जाए।

इग्जेक्युटिव सुविधा: कार्ड कंपनियों की तरफ से कई बार कस्टमर के पास फोन आता है कि क्या वे उनके बिल की पेमंट के लिए अपना इग्जेक्युटिव भेज दें। कस्टमर को यह सुविधाजनक लगता है और ज्यादातर लोग इसके लिए हामी भर देते हैं। कस्टमर के हां करते ही इग्जेक्युटिव पेमेंट लेने आ जाता है, लेकिन याद रहे इस सुविधा के लिए कई कंपनियां पैसे चार्ज कर लेती हैं।

इन्शुअरन्स प्रीमियम: कुछ प्रीमियम क्रेडिट कार्ड पर कई तरह का कवर भी होता है। अगर कंपनी कस्टमर को बताकर यह सुविधा दे रही है, तब तो ठीक है, लेकिन कई कंपनियां बिना बताए ही कस्टमर को इन्शुअरन्स कवर दे देती हैं और बिना कस्टमर को बताए प्रीमियम की रकम काटी जाती रहती है। कंपनियां इस बात की भी परवाह नहीं करती कि जिस कस्टमर को वह इन्शुअरन्स कवर दे रही हैं, उसने किसी को नॉमिनेट भी किया है कि नहीं।

कैसे करें शिकायत

क्रेडिट कार्ड से जुड़ी कई तरह की दिक्कतें कस्टमरों को झेलनी पड़ती हैं। कोई भी समस्या होने पर कार्ड यूजर को तुरंत शिकायत दर्ज करानी चाहिए। अगर शिकायत कॉल सेंटर में कराई जा रही है तो शिकायत दर्ज कराते वक्त शिकायत नंबर, डेट और उस व्यक्ति का नाम जरूर पता कर लें, जिसे आपने शिकायत लिखाई है। कई बार कस्टमर केयर पर शिकायत की सुनवाई न होने की शिकायतें आती हैं। ऐसे में सीनियर अधिकारी से बात करने को कहा जा सकता है। इग्जेक्युटिव उसी नंबर से आपकी कॉल आगे बढ़ा देते हैं। ऐसा न होने पर कंपनी की साइट्स पर दिए गए ईमेल व नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है। अगर खुद बैंक में जाकर शिकायत लिखा रहे हैं तो शिकायत की रिसीविंग जरूर ले लें। आरबीआई की गाइडलाइंस के मुताबिक हर बैंक की एक शिकायत निवारण सेल होती है। शिकायतकर्ता अपने बैंक के ग्रीवांस रिड्रेसल ऑफिसर से भी कॉन्टैक्ट कर सकता है। आरबीआई के मुताबिक इस अफसर का नाम बिल पर लिखा होना चाहिए। बैंक या कॉल सेंटर में दर्ज कराई गई शिकायत पर 30 दिन के अंदर कार्रवाई हो जानी चाहिए। अगर 30 दिन के अंदर बैंक की तरफ से कोई संतोषजनक कदम नहीं उठाया जाता, तो कस्टमर संबंधित ओम्बड्समन से कॉन्टैक्ट कर सकता है। यहां वह मानसिक पीड़ा, पैसे के नुकसान और हरजाने का दावा कर सकता है।

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