
1983 की गर्मियों में एक व्यक्ति को जर्मनी के मैसेल पिट से एक जिवाश्म मिला. उसे वह जिवाश्म थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन वह यह नहीं समझ पाया कि इसकी क्या उपयोगिता है. वह उस जिवाश्म को अपने घर ले आया और उसके दो टुकड़े भी कर दिए.
वर्षों तक वह जिवाश्म उस व्यक्ति के पास ही रहा. लेकिन एक दिन नोर्वे के जिवाश्म विशेषज्ञ जोम हरम की नजर उस पर पड़ी और उसके बाद दुनिया को इंसान का अब तक का सबसे पुराना साथी मिल गया.
जोम हरम ने इस जिवाश्म के ऊपर करीब 2 साल तक कार्य किया. वे इस जिवाश्म को देखकर चकित हुए क्योंकि इस जिवाश्म का सिर्फ 5% हिस्सा ही गायब था यानी कि यह जिवाश्म लगभग सम्पूर्ण था.
हाल ही में इस जिवाश्म का प्रदर्शन न्यूयार्क के नैचुरल साइंस म्यूज़ियम मे किया गया. यह जिवाश्म लगभग 4 करोड़ 70 लाख वर्ष पुराना है और इंसानों तथा बंदर, चिपांजी आदि प्राणियों का पूर्वज है.
यह जिवाश्म इंसानों की उत्पत्ति गाथा की खोई हुई कड़ी का एक भाग है. अब हमें पता चल गया है कि वह कौन सा काल रहा होगा जब इंसानों के पूर्वज तथा लैमूर जैसे प्राणियों की जातियाँ अलग हुई होगी. इसके बाद एक शाखा से लैमूर बने और एक शाखा से इंसान.
इस जिवाश्म - जिसे कि “इदा” नाम दिया गया है – के एक पूँछ थी, इंसानों जैसे ही हाथ थे और उसकी आँखे भी आगे की ओर थी जैसे कि बंदरों और इंसानों मे होती है.
अमेरिका की ज्योर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के ब्रायन रिचमंड का कहना है कि – इदा हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह इंसानों के उत्पत्ति शाखा की एक कडी है. इदा उस समय का जानवर थी जब आज की दुनिया आकार ले रही थी. डायनासोर विलुप्त हो रहे थे, हिमालय बन रहे थे और स्तनधारी जीव जंगलों की और जा रहे थे.
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