Thursday, June 18, 2009

चाहिए मेट्रोसेक्सुअल मैन!

माचो लुक रखने के साथ महिलाओं को लेकर संवेदनशील पुरुष शायद हमेशा से उनकी पसंद रहे हैं। हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आन


े से यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है।

बेहद तेजी से बदलती इस दुनिया में लोग भी उतनी ही तेजी से बदल रहे हैं। हालांकि इस सबके बीच एक बड़ा सवाल यह है कि इस बदलाव के बीच पुरुष खुद को कितना बदलने के लिए तैयार हैं। क्या वे खुद को मेट्रोसेक्सुअल से नियोसेक्सुअल में बदलने को तैयार हैं? हाल ही में एक कॉस्मेटिक कंपनी के सर्वे में यह बात सामने आई है कि 81 पर्सेंट महिलाओं को ऐसे पुरुष पसंद होते हैं, जो माचो तो हो, लेकिन कॉपरेटिव और उन्हें लेकर संवेदनशील भी हों।

इस सर्वे से जुड़े बर्नाड सॉल्ट कहते हैं, 'उन्हें एक ही पुरुष में जेम्स बांड जैसा स्टाइल, ह्यूज जैकमैन जैसा लुक, जिम कैरी जैसा ह्यूमर और जैक एफरन जैसी जवानी चाहिए।'

इसका मतलब मेट्रोसेक्सुअल पुरुष को खुद को नियोसेक्सुअल अवतार में बदलने की तैयारी करनी चाहिए? वीजे निखिल कहते हैं, 'मुझे खुद को अलग-अलग नामों से बुलवाना पसंद करने वाले जेंटलमैंस की लीग में शामिल होने का कोई शौक नहीं है। साथ ही मैं मेट्रोसेक्सुअल भी नहीं कहलाना चाहता। कोई चाहे कुछ भी कह लें, लेकिन मेट्रोसेक्सुअल ना कहे।' क्या नियोसेक्सुअल नई बोतल में पुरानी शराब है? इस पर निखिल बताते हैं, 'मेरे ख्याल में यह मामला हाइप करना कुछ ऐसे लोगों का काम है, जिनके पास कोई काम नहीं है।'

टीवी एक्टर अमर उपाध्याय भी निखिल की बात से सहमत हैं। वह कहते हैं, 'मैंने इन तथाकथित मेट्रोसेक्सुअल्स के बारे में पढ़ा है, लेकिन आज तक मुझे कोई ऐसा इंसान देखने को नहीं मिला, जो उसकी परिभाषा पर खरा उतरता हो। मुझे लगता है कि मेट्रासेक्सुअल और नियोसेक्सुअल जैसे टर्म कुछ लोगों ने स्टाइल मारने के लिए बना लिए हैं, लेकिन रियल लाइफ में ऐसा बनना बेहद मुश्किल है।'

क्या भारतीय महिलाओं को मेट्रोसेक्सुअल पुरुषों में अपने लिए बेहतर पार्टनर नजर आते हैं? एक्टर जलक ठक्कर कहते हैं, 'आजकल पुरुष और महिलाएं काफी प्रैक्टिकल हो गए हैं। पुरुष अब यह समझने लगे हैं कि महिलाओं की भी अपनी एक दुनिया और प्रायरिटीज हैं। इसलिए वे इसमें उनकी हेल्प करने को तैयार हैं।' हालांकि अमर का मानना है कि महिलाओं के प्रति संवेदनशील होना एक नेचरल प्रोसेस है। आप इसमें कोई दिखावा नहीं कर सकते। अमर कहते हैं, 'पुरुषों को हमेशा नेचरल रहना चाहिए। मेरा मानना है कि वे हमेशा संवेदनशील होते हैं। लेकिन कई बार उन्हें समाज के नियम-कानूनों के आगे झुकना पड़ता है। मुझे पंसारी की दुकान से सामान खरीदना पसंद है, जबकि मेरे पिताजी को खाना बनाना बेहद पसंद था।'

हालांकि पीआर प्रफेशनल मीनाक्षी सरकार को तथाकथित 'मैन' में कोई चेंज नजर नहीं आता। वह कहती हैं, 'आजकल फाइनैंशल इंडिपेंडेंस की वजह महिलाएं अपने पति को बॉस की तरह नहीं समझतीं। अगर आप इस चीज को खत्म कर दें, तो पुराने वाले रूप में लौट आएंगे।'

हालांकि एजुकेशनिस्ट मंजुला पूजा श्रॉफ की सोच थोड़ा अलग है। वह मानती हैं, 'सोसायटी के कुछ हिस्सों में पुरुष हमेशा से मेट्रोसेक्सुअल रहे हैं, लेकिन उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। लोअर इनकम ग्रुप से संबंध रखने वाले पुरुष हमेशा से घर के कामों और बच्चे पालने में वाइफ की मदद करते हैं। जबकि अर्बन क्लास में यह ट्रेंड पिछले कुछ वक्त से देखने को मिल रहा है।'

बहरहाल, लगता है कि सोसायटी में कुछ भी चेंज नहीं हो रहा, सिवाय इसके कि इंग्लिश लैंग्वेज कोकुछ नए शब्द मिल गए हैं!

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